Saturday, May 16, 2020

तेरे शहर न आना दूबारा

मजलूम मजदूर गरीब किसान


ये आँखे ये नजरें मिलगी न दुबारा
तेरे मुल्क तेरे घर न आना दुबारा
मगर हम मिलेंगे न कभी  न दूबारा
वो वक्त भी आयेगा जब जागोगे दूबारा।

गिरे इस कदर  दर बे दर हो गए
तेरी नजरों के सामने बिखर हम गये
पता नही था मुझको ए हुकमते सरकार
तेरे दिल मे न जगह न थी हम गरीबों को खिलाने की।

क्या पता सरजमीं पे जिंदा कौन रहेगा
इस मुल्क की हिफाजत कोन करेगा
सलामत रहेंगे अगर फिर तकलीफ नही देंगे
रहेंगे अपने बसेरे में मगर तेरे शहर न आएँगे।

पूछ रहा हैं नन्हा बच्चा घर कभी आएगा
कैसे कहूँ ये नादान अभी कदम चलाये जा
निकलेगे जब खून की पिचकारी पंजों से
बस रूह निकलने से पहले अपना घर आयेग।


अब्दुल्ला साबिर
Abdulla sabir



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